तिब्बत के प्रकाश मिलरेपा की कहानी
तिब्बत जो भारत के उत्तर में स्थित एक देश था जो अब चीन के कब्जे में है। इस तिब्बत में मिलेरेपा नाम का एक लड़का हुआ। पिता के देहांत के बाद वह अपनी माता एक छोटी बहन के साथ अपने चाचा के पास रहने लगे उसका चाचा उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित और अपमानित करता था। मिलरेपा ने उससे बदला लेने के लिए अपनी माता और छोटी बहन को छोड़कर कहीं चले गए फिर कई वर्षों के बाद वापस लौटे तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनकी माता और छोटी बहन की मृत्यु हो चुकी थी। यह जानकर वह और क्रोधित हो गए उन्होंने कई तांत्रिक विद्याएं सीख ली थी। वह केवल सही मौके के इंतजार में थे एक दिन उनके चाचा ने अपनी बेटी की शादी की अपने मित्रों रिश्तेदारों को आमंत्रित किया मिलरेपा ने उस सभा के ऊपर ओलो की बारिश करा दी वह जगह बर्फ के ओलो के नीचे दब गई। उसमें चाचा-चाची समेत करीब 89 लोग मारे गए इससे तो इस समय मिलेरेपा को खुशी मिली लेकिन कुछ समय बीते बाद....।
इनको यह एहसास हुआ कि उन्होंने अपनी विद्याओं का गलत उपयोग किया है। वास्तव में ऐसा करने के लिए आपके अंदर एक घटियापन होना चाहिए नहीं तो आप ऐसा नहीं कर पाएंगे उनके अंदर अशांति आ गई। वे अपनी गलतियों के पश्चाताप के लिए कई लोगों से मिले लोगों ने अलग अलग रास्तों पर चलने को कहा किसी ने कहा सत्य अहिंसा की मार्ग पर चलो सब अच्छा होगा और एक जन्म से दूसरे जन्म में विचरण करते रहोगे। लेकिन उन्हें शांति नहीं मिली वो खोजते रहे एक व्यक्ति ने कहा आपकी परेशानी को केवल एक ही आदमी ठीक कर सकता है ।वह है मारपा (मारपा को ट्रांसलेटर भी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने भारत के कई वेदों और ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया था) तो मिलेरेपा मारपा के नगर गए उन्होंने कुछ बच्चों से पूछा मारपा कहां रहते हैं ।एक बच्चे ने कहा मैं जानता हूं। चलिए वो एक खेत में ले गया मारपा खेत जोत रहे थे। इन्होंने हल पटक दिया और कहा यह पानी पी लो और खेत जोतो। फिर जब शाम को वह लड़का उनको मारपा के घर ले आया तो उन्हें एहसास हुआ कि वह लड़का मारपा का बेटा था मिलरेपा ने मारपा से कहा मुझे थम्ब ( एक प्रकार की दीक्षा) चाहिए। और मुझे रहने खाने की व्यवस्था कर दीजिए। मारपा ने कहा मैं तुम्हारे खाने की व्यवस्था कर सकता हूं थम्ब कहीं और ले लो या थम्ब की दीक्षा दे सकता हूं रहने खाने की व्यवस्था कहीं और कर लो मिलरेपा ने कहा ठीक है। मुझे थम्ब चाहिए रहने खाने की व्यवस्था कहीं और कर लूंगा।
तो वो भिक्षा मांगने चले गए। वे जोशीले किस्म के व्यक्ति थे वह जो भी करते थे उसे कुछ ज्यादा ही कर डालते थे। तो भिक्षा मांगते-मांगते दूर तक निकल गए और कई बोरे अनाज इकट्ठा कर लिए और कुछ बेचकर 4 हैंडल वाला लोटा खरीदा और अनाज लेकर आए।मारपा खाना खा रहे थे मिलरेपा ने बोरे को पटक दिया मारपा उठे और बोले लगता है तुम बहुत गुस्से में हो तुमने इस बुरे के आवाज से पूरे घर को हिला दिया। लगता है तुम अपने चाचा-चाची के घर की तरफ इस घर को भी ढाह दोगे। निकलो यहां से चलो निकलो मिलरेपा गिड़गिड़ाये उन्होंने कहा बोरा भारी था काफी दूर से ला रहा था इसलिए पटक दिया मैं माफी चाहता हूं।तब समय बीतने लगा मिलरेपा खेतों में काम करते रहे कई वर्ष बीत गए कई लोग आते और दीक्षा लेकर चले जाते लेकिन मिलरेपा को अभी तक एक भी दीक्षा नहीं मिली थी मिलरेपा ने मारपा की पत्नी से एक दिन कहा कई लोग आए और दीक्षा लेकर चले गए मुझे अभी तक कोई दीक्षा नहीं मिली है मैं जानता हूं कि मैंने कई गलतियां की है पर मैंने इसके लिए बहुत ज्यादा पश्चाताप नहीं कर लिया? लेकिन इसका कुछ असर नहीं हुआ दिन गुजरते जा रहे थे। एक दिन मिलरेपा चुपके से कई शिष्यों के साथ आकर बैठ गए मारपा ध्यान में बैठे थे वे आंखें बंद किए हुए ही एक डंडा उठाया और मिलरेपा के पास आए और उनकी पिटाई कर दी इनको घसीटते हुए बाहर ले गए और उठा कर फेंक दिया
इसी तरह समय बीतता गया अब मिलरेपा की उम्र ढलने लगी थी। फिर एक दिन मिलेरेपा मारपा की पत्नी के सामने गिड़गिड़ाए उन्होंने कहा आप कुछ कीजिए मेरी उम्र ढलती जा रही है मुझे एक भी दीक्षा नहीं मिली यह सुनकर मारपा की पत्नी को मिलेरेपा पर दया आ गई। उन्होंने दूसरे भिक्षु को पत्र लिखा जो मारपा की तरह ही दीक्षा देता था। उन्होंने पत्र ऐसे लिखा जैसे कि मारपा ने ही लिखा हो और उस पर मारपा की मुहर लगा दी मिलरेपा उस पत्र को लेकर उस भिक्षु के पास गए मिलरेपा को दीक्षा मिली लेकिन इसका उन पर कुछ असर नहीं हुआ। यह बात मारपा को पता चली मिलरेपा अब आत्महत्या करने वाले थे तब मारपा ने उन्हें बुलाया और कहा तुम अब तैयार हो तुम्हें बहुत पहले ही दीक्षा मिली होती लेकिन तुम्हारी चलाकि की वजह से तुम देर कर रहे थे। तुम सब कुछ अच्छे से करते हुए बीच में एक चलाकि वाला रास्ता अपना लेते हो लेकिन अब तुम तैयार हो अब तुम्हारा पश्चाताप तुम्हारी अंतरात्मा को छू रहा है मारपा ने मिलरेपा को दीक्षा दी और मिलरेपा को तीसरे दिन ही दाकिनी के दर्शन हुए (दाकिनी तिब्बत की देवी ) दाकिनी ने कहा "तुम्हें एक दीक्षा नहीं मिली है जाओ मारपा से इसके बारे में पूछो"तो मिलेरेपा मारपा के पास आए मारपा ने मिलरेपा को देखकर पूछा तुम यहां क्यों आए हो मिलेरेपा ने कहा दाकिनी ने कहा है कि यह एक दीक्षा नहीं मिली मारपा ने मिलरेपा के सामने सिर झुका दिया और कहा यह ज्ञान मेरे पास भी नहीं है। तो चलो चलते हैं दोनों मारपा के गुरु के पास चले जो भारत और नेपाल की सीमा पर कहीं रहते थे उन्होंने पूरी यात्रा पैदल ही तय कि मारपा अपने गुरु से मिले मारपा ने बताया कि यह एक ज्ञान नहीं मिला है। गुरु ने कहा यह तुम्हारा नहीं है ऐसा तुम्हारे साथ नहीं हो सकता मारपा ने बताया यह मेरा मेरे साथ नहीं बल्कि मेरे एक शिष्य के साथ हुआ है। गुरु उत्तर की तरफ मुड़े और सिर झुका दिया उन्होंने कहा आखिरकार उतर के अंधकार में एक प्रकाश चमका मारपा के गुरु ने मारपा और मिलरेपा को बैठाकर जीवन के संपूर्ण ज्ञान की दीक्षा दी वह दोनों तिब्बत वापस लौट गए और मारपा जो मिलरेपा के गुरु थे अब उनके शिष्य की तरह बन गए थे पिछले3 से 4 सौ सालों के बीच तिब्बत की संस्कृति में जो कुछ हुआ है वह मिलेरेपा के ज्ञान पर आधारित था। मिलेरेपा तिब्बत के अंधकार में एक प्रकाश की तरह चमक उठे चमक उठे
अगर भारत में कोरोना काल के समय लोकतंत्र ना होता तो क्या होता है !
शिष्य कैसा होना चाहिए और उसके गुण कैसे होने चाहिए?
एक शिष्य मिलेरेपा की तरह होना चाहिए। जो अपने गुरु मारपा के कड़े दंड के बावजूद भी दीक्षा मिलने की आस लगाए उनके सारे काम करते रहे और वह भी एक या 2 दिन नहीं लगभग 20 से 25 वर्षों तक इतना तपने के बाद वह एक ज्योति की तरह चमके और उनकी सदियों से पूजा होती जा रही है।
हमारे अंदर कितना धैर्य होना चाहिए?
मिलेरेपा से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हमारे अंदर धैर्य होना चाहिए वह भी बहुत ज्यादा धैर्य मिलेरेपा ने कई वर्षों धैर्य रखा लेकिन उन्होंने भी धैर्य खो दिया और परिणाम हुआ उनको ज्ञान मिलने में देरी
क्या शिष्य गुरु से ऊपर हो सकता है?
क्या आपने ध्यान दिया की मारपा ने मिलरेपा के सामने सिर झुका दिया यह उनकी कड़ी मेहनत और ज्ञान पाने की प्रबल इच्छा के कारण हुआ है
हमें अपनी शक्तियों का कितना प्रयोग करना चाहिए?
हमें अपनी ऊर्जा या शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए नहीं तो पश्चाताप बहुत भयानक होता है इसकी उदाहरण है मिलरेपा
हमें अपनी मार्ग से क्यों नहीं डगमगाना चाहिए?
जब हमें प्रकृति संकट ग्रसित करती है हमें केवल अपने मार्ग पर चलते रहना है संघर्ष कितना भी कठिन हो इसकी शिक्षा आपको और हमें मिलरेपा की कहानी द्वारा मिलती है।
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