क्या ईश्वर के लिए पूजा स्थल जरूरी है
आपको यह समझना चाहिए कि इन्सान जो भी करता है अपने (स्वयं) के भले के लिए करता है। इसलिए मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा जो भी पूजा स्थल इन्सानो ने बनाया है। वो भगवान के लिए जरूरी नहीं है बल्कि इन्सानो के लिए जरूरी है। कोई भी भगवान को समर्पित स्थल हो वाहाँ पर असीमित ऊर्जा का भंडार होता है। जो आपके पूरे सिस्टम को हिला देगा। क्या आपने यह महसूस किया है जब आप किसी मंदिर गये और आपको एक अलग ही आनन्द की अनुभूति होती है। आप कितने ही चिन्तित क्यों न हो यह आपके सिस्टम में बदलाव कर सकता है आज लोग मंदिर, मस्जिद जाते है और चलो चलो...,
यह भारतीय संस्कृति का मंदिर है जहां पर बहुत सारे लोग बैठकर इस स्थान की सकारात्मक ऊर्जा का लाभ उठा रहे हैं अपने शरीर के सिस्टम को ठीक कर रहे हैं |
नहीं यह ठीक नहीं है। आपको वाहाँ बैठना चाहिए। आपके शरीर के सिस्टम को इसका लाभ उठाने देना चाहिए आज नाकारात्मक ऊर्जा प्रभावी होने लगी है। हम अपने शरीर को मूल तत्वों, धरती, वायु, जल, अग्नि, आकाश (यहाँ 'आकाश' से मेरा मतलब है पूरा अंतरिक्ष) से दूर करने की कोशिश कर रहे है । जैसे- जमीन से दूरी चपल पहन कर, कार में चलकर, रात को बेड पर सो कर, वायू से दूरी यह ज्यादातर लोगो के लिए नहीं है बंद कमरे मे पंखे, कूलर, एसी आकाश से दूरी ज्यादातर बंद कमरो या छाया में रहकर आदि
मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा, मंदिर ये सभी स्थल हमारे शरीर को यह याद दिलाते है कि यह इन्ही मूल तत्वो से बना है। सभी ईश्वर को समर्पित स्थलों मे यह नियम होता है कि स्नान करके ईश्वर की प्रतिमा के पास जाकर उनकी आराधना करे भीगे कपड़ों में जाना सबसे अच्छा होता है। इससे जब हम प्रणाम झुककर, लेट कर करते हैं तो धरती से हमारे शरीर का सम्पर्क होता है जब कपडे गिले होते हैं तो यह और व्यवस्थित होता है । और हमारे शरिर की नाकारात्मक ऊर्जा धरती माँ सोख लेती है। क्योंकि धरती आवेश को अपने अन्दर खिंच लेती है और वाहाँ की ताजी हवा जैसे हमारे सिस्टम को रिसेट मार देती है। अगर आपने यह महसूस नहीं किया है। तो आप परमात्मा को समर्पित स्थलों पर जाइए और वाहाँ की असीम ऊर्जा को महसूस किजिए। यह आपके रीड़ की हड्डी को झकझोर सकता है।
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